समाचार विश्लेषण/महिला पहलवान: सितारे जमीन पर
कल दो बड़े घटनाक्रम हुए । दोनों आपस में जुड़े हुए । पहला नये संसद भवन का उद्घाटन और दूसरा महिला पहलवानों के साथ जो व्यवहार सामने आया उससे मुंह से एकदम यही निकला-तारे जमीन पर ! बल्कि सितारे जमीन पर ! ये महिला पहलवान अपना विरोध व्यक्त करने नये संसद भवन की ओर कूच कर रही थीं कि पुलिस ने न केवल इन्हें रोका बल्कि सड़क पर घसीटा भी और इनके शिविर तक उखाड़ फेंके !
-*कमलेश भारतीय
कल दो बड़े घटनाक्रम हुए । दोनों आपस में जुड़े हुए । पहला नये संसद भवन का उद्घाटन और दूसरा महिला पहलवानों के साथ जो व्यवहार सामने आया उससे मुंह से एकदम यही निकला-तारे जमीन पर ! बल्कि सितारे जमीन पर ! ये महिला पहलवान अपना विरोध व्यक्त करने नये संसद भवन की ओर कूच कर रही थीं कि पुलिस ने न केवल इन्हें रोका बल्कि सड़क पर घसीटा भी और इनके शिविर तक उखाड़ फेंके ! यानी कहीं से इशारा रहा होगा कि इनके शिविर को तहस नहस कर दो ! धारा 144 भी लगा दी । जबकि विनेश फौगाट , साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया वही लोग हैं जिन्होंने पहलवानी को नयी ऊंचाइयां प्रदान कर देश व तिरंगे का गौरव बढ़ाया । अब भी लोग तो वही थे , तिरंगा भी वही था और देश की राजधानी भी वही थी लेकिन दृश्य बिल्कुल अलग था । तिरंगे को थामे विनेश और साक्षी को घसीटती हुई ले जा रही पुलिस । आह ! बहुत ही शर्मनाक दृश्य और सच में दुष्यंत कुमार का शेर बेसाख्ता याद आया -
कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं !
क्यों विनेश , साक्षी और बजरंग को इस हालत में पहुंचाया गया ? क्या कसूर है इनका ? बस , कुश्ती संघ के पूर्वाध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की कथित गंदी हरकतों और सोच को सामने लाना ? यौन उत्पीड़न के आरोप लगाना ? क्या बेटियां इतना भी विरोध न करें ? खामोशी से सहन करती रहें ? कहाँ जायें अपनी फरियाद लेकर ? दूसरी ओर हरियाणा , पंजाब व उत्तर प्रदेश से महापंचायत में शामिल होने आ रहे लोगों को भी हिरासत में ले लिया गया ! हिसार में ही नेशनल हाइवे पर कितनी बसें रोकी गयीं और देर शाम छोड़ा गया ! क्या सरकार किसान आंदोलन के तजुर्बे भूल गयी ? किस तरह कीलें ठोंक कर रास्ते रोके लेकिन आंदोलन नहीं रुका था । फिर से वही गलती दोहराई जा रही है । इन बेटियों ने तो सम्मान की लड़ाई शुरू की थी और वह भी अपने इस मान के साथ कि हमारे प्रधानमंत्री हमारे मन की बात समझते हैं और बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ के पैरोकार हैं लेकिन वे मुगालते में रहीं । तेइस अप्रैल से शुरू यह धरना प्रदर्शन आज धक्कामुक्की और सड़क पर घसीटने तक पहुंच गया है और तिरंगे के साथ सड़क पर घसीटता महिला पहलवान का चेहरा बहुत ही व्यथित कर रहा है । यह फोटो इतनी वायरल हुई कि बच्चा बच्चा पहचान गया । क्या इससे देश की छवि धूमिल नहीं हुई ? क्या ये बेटियों आपको कुछ नहीं कह रहीं ? साक्षी मलिक का कहना है कि पुलिस ने कूच को हिंसक संघर्ष में बदलने की कोशिश की है जबकि विनेश फौगाट की प्रतिक्रिया है कि हमें इस भारत की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी । यौन शोषण का आरोपी खुले में घूम रहा है और हम महिला पहलवानों पर जुल्म ढाये जा रहे हैं ! आरोपी को बचाने के लिये देश से ऊपर हठधर्म दिख रहा है । हमें इस नये भारत की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी । बजरंग का कहना है कि पुलिस खेल रत्न और पद्मश्री को घसीट रही है । अरे ! ये पुलिस का डंडा है और कानून की देवी अंधी है जो कुछ नहीं देखती । न पद्मश्री और न खेल रत्न । यह कोई कानून का डंडा थोड़े है बजरंग ! सच में अब हर घर तिरंगा पहुंच गया लेकिन बदले रूप में !
दूसरी ओर बृजभूषण शरण सिंह की नेक सलाह कि धरने की जिद्द छोड़कर घर जायें और जाच पर भरोसा रखें । वैसे लगता है कि जितने आत्मविश्वास से बृजभूषण भरे हैं , उन्हें जांच का परिणाम पहले से ही पता है और वे जांच पर इसीलिये भरोसा किये आराम से बैठे हैं ! दिल्ली महिला आयोग ने भी इस पुलिस कार्यवाही की जांच की मांग की है ।
संसद भवन का उद्घाटन भी विवादों से भरा रहा । विपक्ष ने लोकतंत्र के इस नये मंदिर के उद्घाटन का विरोध किया कि राष्ट्रपति इसका उद्घाटन करें न कि प्रधानमंत्री ! विपक्ष बाहर रहा और अंदर शंखनाद हो गया !
इस तरह तारे जमीन पर और विपक्ष बाहर !
क्या क्या देखने को मिल रहा है ! क्या क्या देखना बाकी है ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।