समाचार विश्लेषण/अंदरूनी जंग जीती, अब हरियाणा को जीतने की जिम्मेदारी
-*कमलेश भारतीय
यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो गयी कि पूर्व मुख्यमंत्री और प्रतिपक्ष नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस के अंदर जंग जीत ली है लेकिन इसे साथ ही सन् 2024 में हरियाणा को जितने की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर आ गयी है । वैसे यह कांग्रेस का दुर्भाग्य ही है कि अपने-आपको साबित करने के लिए इतनी लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी और तब जाकर खुला हाथ मिला काम करने का । कोई इसमें यह कह रहा है कि फूलचंद मुलाना , अशोक तंवर व शैलजा के बाद यह लगातार चौथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष है जो एक ही वर्ग में से आये हैं । यानी कांग्रेस हाईकमान संतुलन बनाए रखने में सफल रही । जाट और गैर जाट का । संतुलन तो पहले भी यही था लेकिन 'तालमेल' की बहुत कमी थी । शैलजा चंडीगढ़ में बैठक या आयोजन रखती तो हुड्डा दिल्ली में विधायकों की बैठक बुला लेते । इसी की छाया पड़ी रही प्रदेश कांग्रेस संगठन बनाने में । न तो अशोक तंवर और न ही शैलजा संगठन बना पाये । देखा जाये तो अपने ही समर्थकों के साथ बैठकें और कार्यक्रम आयोजित करते रहे । जहां अशोक तंवर को लगभग छह साल का समय मिला , वहीं शैलजा को सिर्फ दो साल और सात महीने ही काम करने का अवसर मिला और आखिर गुटबाजी के चलते इस्तीफा दे दिया और फिर भी यही कह रही हैं कि कांग्रेस में गुटबाजी नहीं है । है न विरोधाभास ? इसी गुटबाजी के दवाब को न सह कर इस्तीफा देना पड़ा और इसी गुटबाजी से आंखें मूंदें हुए बैठी हैं । क्यों ? सच स्वीकार क्यों नहीं हो रहा ? अशोक तंवर तो आप में चले गये और अटकलें हैं कि शैलजा को राज्यसभा में भेजा जायेगा ।
चौ भजन लाल के अतिमहत्त्वाकांक्षी बेटे कुलदीप बिश्नोई ने भी कम पापड़ नहीं बेले अध्यक्ष पद पाने के लिए । जनसम्पर्क अभितन चला कर गैर जाट राजनीति का चेहरा बन कर दिखाने की पूरी कोशिश की । आखिर नहीं बन पाये अध्यक्ष । अब समर्थकों को कह रहे हैं कि गुस्सा तो बहुत है लेकिन पहले राहुल गांधी से जवाब सुन लूं । यह भी चर्चा है कि उन्हें विधानसभा चुनाव में कोई बड़ी जिम्मेदारी सौपी जायेगी । वैसे तब तक धैर्य रखेंगे या इससे पहले ही कहीं और उड़ान भर लेंगे । कोई कह नहीं सकता । जैसे थानेसर से पूर्व विधायक रमेश गुप्ता अध्यक्ष के नाम की घोषणा होते ही आप में शामिल हो गये । अभी थोड़ी उठापटक चलेगी । चीजें सैटल होने में और नेता बात को हजम करने में समय तो लेते ही हैं ।
अब सबसे पहले प्रदेश कांग्रेस संगठन बनाने की जरूरत है जोकि सालों से नहीं बना । फिर गुटबाजी पर कैसे नियंत्रण पाया जायेगा ? इसके बाद युवा व वरिष्ठ क्रांग्रेसजनों में तालमेल बनाने की बात भी आती है ।
वैसे तो चार कार्यकारी अध्यक्ष बना कर संतुलन बनाने की कोशिश की गयी है लेकिन यह सब जानते हैं कि खुला हाथ किसे दिया गया है और आने वाले दिनों में क्या क्या बदलाव आने वाला है । श्रुति चौधरी , सुरेश गुप्ता , जीतेंद्र भारद्वाज और गुर्जर को कार्यकारी अध्यक्ष बना कर संतुलन साधने की कोशिश की गयी है ।
कुछ लोग फिर पार्टी के अंदर ही पाले बदलेंगे । जो लोग कल तक शैलजा के साथ साथ चल रहे थे और उनके कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाते थे , वे अब राह बनायेंगे नये अध्यक्ष की ओर जाने की । यह पालाबदल जल्द देखने को मिलेगा । इसी तरह जो दूसरी पार्टियों में चले गये थे , वे लौट सकते हैं ।
कुछ भी हो कांग्रेस हाईकमान ने जो भरोसा जताया है , अब उस पर खरे उतरने की चुनौती है हुड्डा के सामने ।
हम तो एक शेर से बात खत्म करेंगे :
यह नये मिजाज की कांग्रेस है
जरा फासले से मिला करो
कोई हाथ भी न मिलाएगा
जो गले मिलोगे तपाक से ,,,
यहां शुभकामनाओं का अर्थ चुनौती ही है कि आपने मुझे काम नहीं करने दिया , अब मेरी बारी है ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।