यमुनोत्री: धार्मिक यात्राओं का रेला

यमुनोत्री: धार्मिक यात्राओं का रेला

-*कमलेश भारतीय 
हमारा देश और देशवासी धार्मिक यात्राओं पर निकले रहते हैं और गर्मी की छुट्टियों में तो पूछो ही मत कि क्या क्या मंजर देखने को मिलते हैं । असल में पुराने समय में ये दुर्गम यात्रायें थीं, पहाड़ और खाइयों के बीच पतली सी सांप जैसी बलखाती सड़क पर बस या कार का चलना, लगता था कि अभी कहीं गये, अभी कहीं गिरे ।  इसीलिए जब दुर्गम यात्राओं पर निकलते थे तब आसपास और पड़ोस में सबसे मिलकर जाते थे, जैसे अंतिम मिलन हो । कहीं कहीं तो फिल्म की शूटिंग में ही पहाड़ देखकर तसल्ली कर लेते थे । बताया गया कि राम तेरी गंगा मैली की शूटिंग इसी यमुनोत्री के क्षेत्र में की गयी थी। वह होटल अब भी राजकपूर की फोटोज लगाये हुए है । अब पुरानी बातें हो गयीं और पहाड़ की सड़कें भी ए वन बन गयी जैसे लालू यादव कहते थे -किसी अभिनेत्री के गाल जैसीं। मेरा भी दो बार अवसर बना था पुरोला जाने का, जहां से यमुनोत्री और गंगोत्री के लिए रास्ते निकलते हैं पर मैं तो पुरोला पहुंचने तक ही गहरी खाइयां देखकर बहुत घबरा गया था कि मेजबान मित्र राजकुमार कपूर के इस आमंत्रण को स्वीकार नहीं किया था । वे वहां सिंचाई विभाग के एक्सीएन थे और कमल नदी किनारे उनका रेस्ट हाउस था । मैं तो दो साल, दो बार जाकर वहीं से लौट आया । 
आज सुन रहा हूँ कि यमुनोत्री के लिए निकले नौ हज़ार पर्यटकों के चलते लगभग नौ घंटे ट्रैफिक जाम लगा हुआ है और ऊपर से जुल्म यह कि कोई होटल और न ही कोई ढाबा। जानकी चट्टी से मंदिर तक का रास्ता जाम है । बताया जा रहा है कि यह चार किलोमीटर संकरा रास्ता है और लोग इसमें लगे जाम में फंसे हैं ।  यह अकेला ऐसा वाकया नहीं है ट्रैफिक जाम का। सबने कभी न कभी यह जाम झेला होगा । मैंने भी परिवार के साथ झेला, जब हम लोग चिंतपूर्णी के लिए निकले और ध्यान नहीं दिया कि नवरात्रे शुरू हो चुके हैं और भरवाईं पर ही एसडीएम महोदय पुलिस फोर्स के साथ मंदिर तक का रास्ता बंद किये खड़े थे और हमें न चाहते भी आधी रात तक ज्वालाजी जाकर गवर्नमेंट गेस्ट हाउस में मुश्किल से जगह मिल पाई थी । तब से यात्रा पर निकलने से पहले मैं भी पत्तरा बांच लेता हूँ कि किसी धार्मिक आयोजन के दिन तो नहीं, तभी यात्रा की जाये । धार्मिक स्थानों पर सरकारी इंतजाम कितने भी कर लिये जायें, ये कम ही रह जाते हैं । अभी पिछले वर्ष हरिद्वार, देहरादून, मंसूरी और ऋषिकेश की यात्रायें कीं और देखा कि होटल से लेकर छोटी-छोटी धर्मशालाएँ तक ठसाठस भरी पड़ी हैं । वहां के निवासी इसे सीजन मान कर चलते है, जबकि आपकी यह धार्मिक यात्रा होती है । सामने वाले धन कमाने बैठे हैं और आप पुण्य कमाने जाते हैं । जगह जगह कर्मकांड हैं और सामने भीख मांगने वालों की भीड़ है । कहां और किसमें है आपकी श्रद्धा ? 
जब भी ऐसी यात्राओं पर निकलें तो मेरा मानना है कि पत्तरा बांच कर ही निकलें और सामान भी बहुत जरूरी क्योंकि आप घूमने जा रहे हैं न कि बसने और हां, साफ सफाई का ध्यान रखिये और प्लास्टिक को न फैलाइये ।  सब आपके शहर हैं। 
सैर कर दुनिया की गाफिल, ज़िदगानी फिर कहां!
ज़िदगानी गर रही तो यह जवानी फिर कहां !! 
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।