तुम्हें याद हो कि न याद हो
कौन सा सन् था ? याद नहीं । पर इतना ध्यान है कि तब तक दैनिक ट्रिब्यून ज्वॉइन नहीं किया था । यानी सन् 1990 से कुछ पहले की बात है । तब मैं यायावर ज्यादा और नवांशहर कम रहता । दिल्ली रमेश बतरा के पास वीकेंड पर चला जाना । इस तरह राजी सेठ और रमेश बतरा के घरों में मेहमान बन दिल्ली के साहित्यिक माहौल में रमे रहना मेरी खुशी थी ।
ऐसे ही एक बार दिल्ली में था । दीदी राजी सेठ के घर से जब नवांशहर लौटने लगा तब उन्होंने बताया कि शिमला में केशव किसी दुर्घटना में घायल हो गये थे । अब थोडे स्वस्थ तो हैं लेकिन अगर मैं लौटते समय शिमला उनसे मिल कर जाऊं और केशव की आंखों देखी जाकर या अगले सप्ताह दिल्ली आने पर बयान कर सकूं तो उन्हें सुकून मिलेगा ।
मैने यह मौन आदेश सहर्ष स्वीकार किया क्योंकि तब स्कूल में गर्मी की छुट्टियां थीं । मैं चंडीगढ पहुंचा भाई विजय सहगल के पास । लगभग शाम हो चुकी थी । सहगल ने मेरा कार्यक्रम पूछा तो मैंने बता दिया कि इस बार राजी सेठ के आदेश पर वाया शिमला नवांशहर जाना है । सहगल हंसे । कहने लगे - यह नया रूट कब से बन गया ? मैंने कहा कि सांझी दोस्ती का यह नया रूट है । फिर उन्होंने पूछा कि कभी केशव से मुलाकात हुई है ? मैंने गांव की सरलता से जवाब दिया कि नहीं । कभी नहीं । यह पहली बार होगा ।
-पता ठिकाना पता है केशव का ?
-नहीं ।
- फिर जाओगे कहां और कैसे ? शिमला में उससे मिलने ?
- आप बता दीजिए न ।
सहगल हंस दिए।
कहाः एक बार तो आज मेरे यहां रूको । बरसात शुरू है हिमाचल में । कल चले जाना ।
इह तरह मैं सहगल जी का अतिथि हो गया ।
निकले थे कहां जाने के लिए, पहुंचे हैं कहां ? मालूम नहीं ।
खैर । भाभी शशि सहगल मायके गयी थीं । सहगल जी ने ही किचन की सारी जिम्मेदारी निभाई । मैंने तो सिर्फ सलाद ही काटा । इस तरह भोजन के बाद थोडा टहले । फिर सो गये ।
दूसरी सुबह नाश्ता कर जब शिमला के लिए चलने लगा तब उन्होंने समझाया कि रिज पर बने लोक सम्पर्क कार्यालय के प्रेस रूम में चले जाना और वहां मौजूद इंचार्ज से कहना कि मुझे केशव के घर पहुंचाने की व्यवस्था कर दो ।
खैर मैं दोपहर तक शिमला पहुंच गया । थोडा रिज पर टहला । फिर शाम चार बजे तक प्रेस रूम पहुंच गया । सहगल जी ने जैसे बताया वैसे ही पूरे आत्मविश्वास में भर कर मैंने इंचार्ज से कह दिया कि केशव जी के घर जाना है । सचमुच जादू हो गया जब मेरे लिए जीप मंगवाई और केशव के घर छोडने का आदेश हो गया ।
मैनें बैग संभाला और जीप में बैठ गया । कई सारे घुमाव आने के बाद आखिर केशव के सरकारी आवास पर उतार कर चलने बने ।
घर के अंदर केशव की धर्मपत्नी ने स्वागत् किया । चाय पानी मिला । केशव के श्वसुर भी ऊना से आए हुए थे जिनके साथ एक और मेहमान था । शाम का अंधेरा होने लगा । केशव नहीं आए ।
आखिर भाभी जी ने सबके लिए खाना बनाया और यह कह खाने की मेज पर आने का न्योता दिया कि वे तो देर से ही आएंगे । आप गर्मागर्म भोजन खा लीजिए । इस तरह मैं अपने मेजबान से मिले बिना ही खाना खाकर फारिग हो गया । वे फिर भी नहीं आए । तब भाभी जी ने हम सबके सोने की व्यवस्था भी कर दी । इस तरह हम सो गये । केशव रात को कब आए पता नहीं । सुबह उठा तो वे सो रहे थे । मैंने नहाने धोने की दिनचर्या संपन्न की । अखबार पढ़ी । इतने में फिर भाभी जी का आग्रह कि नाश्ता लग गया । आ जाओ । तब तक केशव जी भी खाने की मेज पर आ जाएंगे । इस तरह उनके पिता और दूसरा मेहमान अौर मैं नाश्ते के लिए आ गये । नाश्ता लगा तब तक केशव भी छडी के सहारे आ गये । नमस्कार हुआ । नाश्ता हुआ । मैं हैरान कि अभी तक केशव ने मुझे पूछा भी नहीं कि मैं कौन हूं ? किस काम से आया हूं ?
मैंने फिर केशव से सवाल किया कि वे मुझे जानते हैं ?
- आप ऊना से मेरे श्वसुर के साथ शिमला में किसी सरकारी काम से आए होंगे । जो भी काम मेरे श्वसुर जी सौंपेंगे मैं करवा दूंगा ।
ओह तो यह बात है । मैं फिर बहुत जोरों से हंसा । जब मैंने अपने आने का प्रयोजन बताया तब वे अपनी कुर्सी से छडी के सहारे उठ कर मेरे पास आए और गले लगाते कहा - भाई । ऊना से काम के लिए श्वसुर जी के साथ लोग आते रहते हैं । मैं इसी गलतफहमी में रहा । मुझे माफ कर दीजिए भाई कमलेश ।
इस तरह यदि मैं नहीं बताता तो केशव जी इसी गलतफहमी में ऑफिस चले जाते । मैं राजी सेठ को क्या बताता ? इतने वर्षों बाद मुलाकात हुई इस वर्ष नवल प्रयास के अप्रैल माह के सम्मान समारोह में । जिसमें केशव भी सम्मानित रचनाकारों में प्रमुख थे । मैं अतिथियों में लीलाधर मंडलोई के साथ । पुरस्कार सम्मान मिलने का चश्मदीद गवाह ।
इस् तरह भाई एच आर हरनोट और विनोद प्रकाश गुप्ता के प्रयास से केशव से यह दूसरी प्यारी सी मुलाकात का मौका मिला ।
अब केशव शिखर समारोह व सम्मान देने जा रहे हैं । उन्हें सक्रिय देख कर खुशी होती है । उनका कथा संग्रह फासला उनके हाथों ही भेंट में मिला और पढने को मिला । बहुत बहुत बधाई । सैल्यूट । केशव भाई ।
-कमलेश भारतीय