ज़िंदगी जीने लगा हूँ

ज़िंदगी जीने लगा हूँ
ललित बेरी।

जब से मिला हूँ तुमसे 
जिंदगी तब से जीने लगा हूँ
हाँ, यह सच है
जिंदगी तो अब जीने लगा हूँ
पहले उदासी में काटता था दिन
अब खुशियोँ में काटने लगा हूँ 
खामोशी भरा बिता रहा था जीवन 
अब गर्मजोशी से बिताने लगा हूँ
सोच नकरात्मक रहती थी मेरी
गमगीन रहता था दिल मेरा
सोच सकरात्मक हो गयी है मेरी 
नज़रिया बदल गया है मेरा
ज़िंदगी भगा रही थी मुझे 
अब ज़िंदगी का लुत्फ़ उठा रहा हूँ
खुशियाँ चिढ़ाया करती थी मुझे
अब खुशियोँ को मना रहा हूँ
तुमने दूर की निराशाएं मेरी 
खुद को आशावादी कहने लगा हूँ
तुम करते हो परवाह मेरी
इसलिए बेपरवाह रहने लगा हूँ
जब से मिला हूँ तुमसे
जिंदगी तब से जीने लगा हूँ
हाँ, यह सच है 
जिंदगी तो अब जीने लगा हूँ
-ललित बेरी